इन शहरो की गलियों में अब तन्हाई बस गयी है
इन शहरो की गलियों में अब तन्हाई बस गयी है
ज़रा ढूंढ के लाओ वो सुकून जो कभी शोर में रहा करता था
अब सन्नाटो में भी यहाँ शोर सुनाई देता है ।
सोती हैं अब ये राहें
सवेरे की गोद में
दिन के उजालो में
शाम की अठखेलियों में
रात के अंधेरो में ।
कहना चाहती हैं तुमसे
शायद इस सफर में साथ यहीं तक था
बिछी थी मंज़िलो से मिलने की उम्मीदों में
फिर क्यों तुम्हारे रास्ते बदल गए ।
चुप सी हैं ये गलियां
जाने अपने मोड़ से खफा हैं
जिन संग उलझती थी
आज उन्ही से खामोश हैं|
इनकी पहचान तुम्ही से थी
रौनक होती थी इनमे तुम्हारे अपनाने से
अब दूर आवाज़ों में अपनी शख्सियत ढूंढा करती हैं ।
भीड़ में गुम होकर जहाँ अपनी तन्हाई भूलते थे
जब साथ दिया था उन्होंने तो अब क्यों अकेला उनको कर गए ।
ख्याल रखो इनका
नज़र रखो इनपे
कहीं नाराज़ हो रेत में ना मिल जाएं
कभी पूछ आओ खैरियत भी
कह आओ इनसे.. तुमने साथ दिया था मेरा, मेरे मुकाम को पाने में
उम्मीद न छोड़ो.. तुमसे मिलने वापिस आएंगे
अपने त्योहारों के रंग से फिर तुम्हे सजायेंगे ।